Swami Vivekananda Biography in Hindi – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

By | March 3, 2020

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – Swami Vivekananda Biography in Hindi स्वामी विवेकानन्द के जीवन से जुडी सभी जानकारी हिन्दी में।

 

Swami Vivekananda Biography in Hindi –

Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद एक महान ब्यक्ति, सर्वश्रेष्ठ शिक्षक, सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। इनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कलकत्ता हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं, स्वामी जी के दादा दुर्गाचरण दत्ता, संस्कृत और फारसी के विद्वान थे, उन्होंने 25 की उम्र में घर छोड़ दिया और एक साधु बन गए।

बचपन से ही स्वामी विवेकानन्द (नरेन्द्र) अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। स्वामी जी अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते थे, मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। उनके वहां नियमित रूप से पूजा पाठ होती रहती थी। उनके माता श्री को पुराण,रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक (स्वामी जी) के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा –

स्वामी जी बचपन से ही बहुत तेज बुद्धि के थे, उस समय बालक लोग विद्यालय में 6-7 की उम्र होने के बाद ही दाखिला लेते थे, सन् 1871 में, 8 साल की उम्र में, स्वामी जी ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया जहाँ वे स्कूल गए। 1877 में उनका पूरा परिवार रायपुर चला गया। 1879 में, कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये।

स्वामी जी दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित कई विषयों के काफी अच्छे पाठक थे। वे वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि रखते थे। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी ट्रेनिंग ली थी, वे नियमित रूप से शारीरिक ब्यायाम करते थे। उन्होंने पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन भी किया था। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक (Arts) की डिग्री पूरी कर ली।

स्वामी जी अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने ही 1893 में रामकृष्‍ण मठ, रामकृष्‍ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी थी। उनका एक कथन – “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये” आज भी दुनिया के लिए एक आदर्श के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश तक पहुंचाया। वे कई देशों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप में भारतीय सभ्यता और संस्कृत को लोगों तक पहुचाये, उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे।

स्वामी जी, रामकृष्ण की मृत्यु के बाद बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में वो अमेरिका चले गए। भारत में स्वामी विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को “राष्ट्रीय युवा दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी जी हमेशा कहते थे “अगर जीवन में सफल होना है ! तो हमेशा हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए” उनकी एक बात और प्रचलित रही “सच्चा पुरुष वही होता है जो हर परिस्थिति में नारी का सम्मान करे”

स्वामी विवेकानन्द की यात्राएँ –

25 वर्ष की अवस्था में स्वामी जी गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया था उसके बाद उन्होंने पूरे भारत का पैदल भ्रमण किया। विवेकानंद ने 31 May 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों (नागासाकी, कोबे, योकोहामा, ओसाका, क्योटो और टोक्यो समेत) का दौरा किया,चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो पहुँचे। स्वामी जी के वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए मीडिया के लोगों ने उनको साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया था।

(Swami Vivekananda Biography in Hindi) स्वामी जी की बातें जो जीवन बदल देती है।

1. जब तक जिन्दगी है तब तक कुछ न कुछ सीखते रहना, क्योंकि अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होता है।
2. जितना बड़ा संघर्ष होता है जीत भी उतनी ही बड़ी होती है।
3. पढाई के लिए जरुरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान. ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
4. पवित्रता, धैर्य और उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं
5. उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तमु अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते।
6. ज्ञान अपने में वर्तमान है मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
7. एक समय पर एक ही काम करना चाहिए उसके लिए उसमे अपनी पूरी ताकत लगा देनी चाहिए बाकि सब कुछ भूल जान चाहिए।
8. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पे विश्वास नहीं कर सकते।
9. ध्यान और ज्ञान का प्रतीक हैं भगवान शिव
10. लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्याय पथ से कभी भ्रष्ट न हो।

ये 10 बातें जिसने भी अपने जीवन में उतार लिया समझो उसका जीवन और भविष्य बहुत ही अच्छा और सुनहरा होगा।

स्वामी विवेकानन्द ने 4 जुलाई 1902 को ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। कलकत्ता में बेलूर गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी थी। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और पूरे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।

स्वामी जी के जीवन से जुडी महत्वपूर्ण तिथियों के बारे में एक नजर –

  • 12 Jan 1863 में कलकत्ता में जन्म।
  • 1879 प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में दाखिला।
  • 1880 में जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में दाखिला।
  • 1884 स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास।
  • 1885 – रामकृष्ण परमहंस की अन्तिम बीमारी।
  • 16 August 1886 में रामकृष्ण परमहंस का निधन।
  • 31 May 1893 Mumbai to USA मुम्बई से अमरीका रवाना
  • 30 July 1893 में शिकागो आगमन
  • August 1893 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट
  • 19 Feb 1897 कलकत्ता आगमन
  • 4 July 1902 महासमाधि

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