Vikram Sarabhai Biography Hindi – विक्रम साराभाई भारत के एक मशहूर बैज्ञानिक थे, इनको भारतीय अंतरिक्ष के प्रत्येक कार्यक्रमों का जनक भी कहा जाता है। अहमदाबाद की धरती पर जन्मे विक्रम साराभाई ने विज्ञानं की दुनिया में गजब का नाम कमाया।
विक्रम साराभाई का जन्म 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद गुजरात, भारत के एक अमीर व्यापारी परिवार में हुआ था, इनके पिता अंबालाल साराभाई कई उद्योगों के मालिक थे, और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग भी दिए थे। इनकी माता का नाम श्रीमती सरला देवी था इन्होने मांटेसरी पद्धति प्रक्रिया का पालन करते हुए निजी स्कूल बनाया था, जिसका उदेश्य बच्चों की अच्छी शिक्षा का होना था।
विक्रम साराभाई अपने आठ भाई बहनों में से एक इकलौते ऐसे थे, जिन्होंने भारत को एक अच्छा सम्मान और गर्व से भरा देश बनाने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया था। (Vikram Sarabhai koun hai? Vikram Sarabhai in hindi, Vikram Sarabhai age, biopic)
Vikram Sarabhai Biography Hindi – संछिप्त परिचय
- नाम – विक्रम साराभाई
- जन्म – 12 अगस्त 1919
- प्रोफेशन – मशहूर बैज्ञानिक (साइंटिस्ट)
- जन्म स्थान – अहमदाबाद गुजरात, भारत
- पिता का नाम – अंबालाल साराभाई
- माता का नाम – श्रीमती सरला देवी
- भाई – बहन – 8
- पुरस्कार और अवार्ड – पद्म भूषण और पदम् विभूषण
- मृत्यु – 30 दिसंबर 1971
डॉ विक्रम साराभाई का शुरूआती जीवन एवं शिक्षा (Dr Vikram Sarabhai Early Life and Education)
डॉ विक्रम साराभाई को बचपन से ही बिज्ञान से बहुत लगाव रहा जिसकी वजह से वह एक महान भारतीय बैज्ञानिक बनकर देश के सामने उभरे। इन्होने अपनी प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा भारत से की उसके बाद यह कैंब्रिज विश्वविद्यालय के सेंट जॉन कॉलेज से जुड़े, जहाँ इन्होने आगे की पढाई पूरी की थी, पढ़ाई पूरी करने के बाद वे सन 1947 में भारत लौट आए।
जब यह विदेश से वापस भारत आये थे, उस समय भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था, बाद में विक्रम साराभाई ने भारत के स्वतंत्रता सेनानी रह चुके कुछ प्रसिद्ध हस्तियों से प्रेरित हुए और उनके साथ उन्होंने अपने जीवन में बहुत बड़े-बड़े काम किए, जिनमें से मुख्य मोतीलाल नेहरू, श्रीनिवास, शास्त्री जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मौलाना आजाद, सीवी रमन और महात्मा गांधी जी आदि थे. इसके बाद वे एक नवीन प्रवर्तक उद्योगपति और दूरदर्शी भी बने।
डॉक्टर विक्रम साराभाई का कैरियर (Dr Vikram Sarabhai Career)
डॉ विक्रम साराभाई अपने आरम्भिक काल में जब वो अपनी पढाई पूरी करके इंग्लैंड से भारत आये, तब उन्होंने अपने घर के पास (अहमदाबाद) में मौजूद शोध संस्थान को बंद कराने के लिए अपने दोस्तों और कई समाज सेवी संस्था को एकजुट करके उसको बंद करवाया, क्योंकि उनके घर के पास बहुत प्रदूषण फैल रहा था, उसके बाद इन्होने भारत में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित करने की योजना बनाई।
समय बितने के साथ ही डॉ साराभाई ने अहमदाबाद एजुकेशन सोसायटी में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के लिए एक छोटी सी जमीन खरीद ली, और उसमे ही भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला का निर्माण कर दिया, उसी समय एमजी कॉलेज ऑफ साइंस का निर्माण कार्य भी जोरो पर चल रहा था।
एमजी कॉलेज ऑफ साइंस में दो छोटे कमरे को अनुसंधान कार्यों के लिए तैयार किया गया, फिर जैसे जैसे उनका काम पूरा होता गया, उन कमरो को योजनाबद्ध तरीके से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के रूप में बदल दिया गया। कुछ समय बाद इन्होने और पैसा जुटाया और बिज्ञान की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए काम करना शुरू कर दिया।
डॉ. साराभाई द्वारा स्थापित संस्थान – (Vikram Sarabhai Biography Hindi)
- भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), अहमदाबाद
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट (IIM), अहमदाबाद
- Community Science Center, Ahemdabad, Gujarat
- दर्पण अकाडेमी फ़ॉर परफ़ार्मिंग आर्ट्स, अहमदाबाद (अपनी पत्नी के साथ मिल कर)
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम
- स्पेस अप्लीकेशन्स सेंटर, अहमदाबाद (यह संस्थान साराभाई द्वारा स्थापित छह संस्थानों/केंद्रों के विलय के बाद अस्तित्व में आया)
- फ़ास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (FBTR), कल्पकम
- वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन प्रॉजेक्ट, कोलकाता
- इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ICIL), हैदराबाद
- यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड(यूसीआईएल), जादूगुडा, Bihar
विक्रम साराभाई का व्यक्तिगत जीवन (Vikram Sarabhai Personal Life)
वर्ष 1942 में विक्रम साराभाई का विवाह एक शास्त्रीय नृत्यांगना मृणालिनी के साथ हुआ, इन जोड़ी की शादी भारत के चेन्नई शहर में हुई। बाद में इनकी दो संताने हुई एक बेटा और एक बेटी। बेटा का नाम कार्तिकेय और बेटी का नाम मालिका था। बेटी ने अपने कैरियर में अभिनेत्री और प्रसिद्ध कार्यकर्ता का नाम कमाया, वहीं उनका बेटा विज्ञान क्षेत्र में महारथ हासिल किया। बताया जाता है की पत्नी के साथ उनका वैवाहिक जीवन लंबे समय तक नहीं चल पाया, बाद में डॉक्टर कमला चौधरी के साथ उनके प्रेम संबंध रहा था।
विक्रम साराभाई की मिले अवॉर्ड्स एवं उपलब्धियां (Vikram Sarabhai Award & Achievements)
- वर्ष 1966 में पदम् भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 1972 में मरणोपरांत पद्म विभूषण पुरस्कार।
- इसके अलावा इनको शांति स्वरुप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
खोज और प्रयोग – Vikram Sarabhai Biography Hindi
- कॉस्मिक किरणों का निरीक्षण करने वाले नए दूरबीनो का निर्माण किया।
- रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाने में डॉक्टर होमी भाभा की सहायता करना।
- साराभाई ने भारत में पहला रॉकेट लॉन्च इंप्रेशन स्थापित किया, यह संस्थान अरब सागर के तट के पास थुम्बा, तिरुवंतपुरम में स्थापित किया गया है।
- रुसी स्पूतनिक लांच के बाद भारत में अंतरिक्ष की महत्वता को समझाया और सरकार को इस बात पर राजी किया कि हमारे देश में भी अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व पर जोर दिया जाना चाहिए।
- ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान’ नामक संगठन यानी इसरो (ISRO) की स्थापना स्वयं की थी।
- अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान नासा के साथ भी साराभाई के अच्छे तालमेल थे, उन्होंने सन 1975 से लेकर 1976 के दौरान सेटेलाइट सफल टेलिविजन एक्सपेरिमेंट लांच किया।
- बाद में विक्रम ने एक अद्भुत भारतीय उपग्रह निर्माण की परियोजना भी शुरू कर दी गई, परिणाम स्वरुप पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट सन 1975 में एक रुसी कॉस्मोडरोम से सफलतापूर्वक अपनी कक्षा में रखा गया।
विक्रम साराभाई की मृत्यु (Dr Vikram Sarabhai Death)
30 दिसंबर 1971 को मात्र 52 साल की उम्र में हार्ट अटैक की वजह से अचानक विक्रम साराभाई मृत्यु हो गई।
साराभाई को इसरो का पिता क्यों कहा जाता हैं ? (Why Doctor Vikram Sarabhai is Called Father of ISRO ?)
एक नई सोच के तहत विक्रम साराभाई ने ही सबसे पहले भारत सरकार को यह आश्वासन दिलाया था कि भारत में अंतरिक्ष सेंटर होने से इसके विकास को गति मिलेगी, जिससे वाली पीढ़ी अंतरिक्ष से जुड़ी बातों के बारे में आसानी से जान पाएगी, जिसके लिए जरुरी है की भारत में भी एक स्पेस सेण्टर खोला जाय, इसी वजह से इनको इसरो का पिता कहा जाता है।
भारत से 22 जुलाई 2019 को पहला लेंडर रोवर बनाया गया जो चांद की ओर पहुंचाया गया, ताकि चाँद के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके, इस रोवर का नाम विक्रम लैंडर रखा गया था, विक्रम साराभाई को सम्मान देते हुए इसरो के जनक के नाम पर ही लेंडर का नामकरण किया गया था।
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