Ishwar Chandra Vidyasagar Ki Jivani – ईश्वर चंद विद्यासागर की जीवनी

By | October 2, 2021

Ishwar Chandra Vidyasagar Ki Jivani – इंडिया बायोग्राफी ब्लॉग में आपका स्वागत है, इस जीवनी लेख में आप भारत के महान दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक और अनुवादक श्री ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के जीवन परिचय से जुड़ी जानकारी प्राप्त करेंगे, तो चलिए जानतें हैं कौन थे ईश्वर चन्द्र विद्यासागर?

Ishwar Chandra Vidyasagar Ki Jivani – जीवन परिचय

Ishwar Chandra Vidyasagar

संस्कृत और दर्शन भाषा में विशिष्ट ज्ञान रखने वाले ईश्वर चन्द्र विद्यासागर भारत के एक सुप्रसिद्ध प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक, और अनुवादक थे। इनका जन्म 26 सितंबर 1820 को पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में हुआ था, बताया जाता है की यह परिवार से बहुत गरीब थे। इनके पिता का नाम ठाकुरदास बन्द्योपाध्याय तथा माता का नाम भगवती देवी था। पत्नी का नाम दीनामणि देवी था, इनके बेटे का नाम बेटे का नाम नारायण चंद्र बन्द्योपाध्याय था।

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की शिक्षा –

इनके बारे में कहा जाता है की इन्होने अपनी प्रांरभिक शिक्षा गाँव के स्कूल से ही प्राप्त किये थे, बाद में यह 6 वर्ष की आयु में अपने पिता जी के साथ कोलकाता आये थे। यह पढ़ने में बहुत तेज थे, जिसकी वजह से इनको कई संस्थानों द्वारा छात्रवृत्तियाँ भी मिली थी। इनको एक उच्चकोटि के विद्वान् भी माना जाता है, इन्होने संस्कृत भाषा और दर्शन में एक अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। विद्यार्थी जीवन में ही इनको ‘विद्यासागर’ की उपाधि मिली थी।

कैरियर एवं समाज सुधारक के रूप में योगदान

ये उन दिनों की बात है जब ईश्वर चन्द्र विद्यासागर वर्ष 1839 में कानून की पढ़ाई पूरी किये थे और फिर वर्ष 1841 में इन्होने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया था। उस समय यह महज इक्कीस साल के ही थे। फोर्ट विलियम कॉलेज में पांच साल सेवा देने के बाद इनको कॉलेज में संस्कृत विभाग का सहायक सचिव के रूप में पद मिला था। उसके बाद इन्होने शिक्षा पद्धति को सुधारने के लिए कार्य करना शुरू कर दिया, इसमें इनको काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा, कॉलेज सचिव रसोमय दत्ता और उनके बीच काफी मनमोटाव भी हुआ था, जिसके कारण इनको कॉलेज छोड़ना भी पड़ा था।

बाद में वर्ष 1849 में यह एक बार फिर वापसी करते हैं और साहित्य के प्रोफेसर के तौर पर संस्कृत कॉलेज में पढ़ाना शुरू करते हैं उसी समय जब इनको संस्कृत कालेज का प्रधानाचार्य बनाया गया तो इन्होने कॉलेज के दरवाजे सभी जाति के बच्चों के लिए खोल दिए थे।

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना भी की थी। और इन स्कूलों को चलाने का पूरा खर्च अपने कंधों पर लिया था, पैसों की कमी न हो इसके लिए यह बच्चों के बंगाली में लिखी गई किताबों की बिक्री से फंड जुटाया करते थे। इन्होने विधवाओं की शादी के हक़ में काफी आवाजें उठाई थी।

Books

Marriage of Hindu widows – 1856 और दूसरी
Unpublished Letters of Vidyasagar

इनके बिचार –

  • जो नास्तिक हैं उनको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ईस्वर में विश्वास करना चाहिए इसी में उसका हित है।
  • अपने हित से पहले, समाज और देश के हित को देखना एक विवेक युक्त सच्चे नागरिक का धर्म होता है।
  • संयम विवेक देता है, ध्यान एकाग्रता प्रदान करता है। शांति, सन्तुष्टी और परोपकार मनुष्यता देती है।
  • दूसरों के कल्याण से बढ़कर, दूसरा और कोई नेक काम और धर्म नही होता है।
  • समस्त जीवोंं मेंं मनुष्य को सबसे सर्वश्रेष्ठ बताया गया है; क्यूंकि उसके पास ही आत्मविवेक और आत्मज्ञान होता है।

रोचक जानकारी –

  • इनको एक प्रसिद्ध दार्शनिक माना जाता है।
  • इन्होने लड़कियों की शिक्षा और विधवाओं की शादी के हक़ के लिए कई सामाजिक सुधार किये थे।
  • यह अपने बेटे का विवाह खुद के विधवा से कराये थे।
  • इन्हीं के प्रयासों से विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ था।
  • इन्होने समाज में बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाजें उठाये थे।
  • इन्होने वर्ष 1848 में वैताल पंचविंशति नामक बंगला भाषा की प्रथम गद्य की रचना की थी।
  • इनको नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर भी कहा जाता है।
  • उस ज़माने में गाँधी जी जवान थे, और साउथ अफ्रीका में पढ़ रहे थे।

Ishwar Chandra Vidyasagar Ki Jivani से जुड़ी जानकारी कैसी लगी?

मृत्यु –

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की मृत्यु 70 साल की उम्र में 29 जुलाई, 1891 को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुई थी।

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