Dada Bhai Naoroji Biography in Hindi – दादाभाई नौरोजी का सम्पूर्ण जीवन परिचय

By | January 13, 2021

Dada Bhai Naoroji Biography in Hindi – दादाभाई नौरोजी भारत के एक मशहूर सख्सियत थे, इनको “ग्रैंड ओल्ड मैन” के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसे एशियाई व्यक्ति भी थे जिन्हें ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में सांसद चुना गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में इनका नाम काफी ऊपर लिए जाता है। इनका जन्म 4 सितंबर, 1825 को ब्रिटिश राज अधीन तत्कालीन बंबई में हुआ था, यह गोपाल कृष्ण गोखले और मोहनदास कर्मचंद गांधी के परामर्शदाता भी रह चुके हैं। इनको भारतीय राजनीति के पितामह भी कहा जाता है, यह कहते थे कि “मैं धर्म और जाति से परे एक भारतीय हूं, इन्होने यह भी कहा था की जब एक शब्द से काम चल जाए तो दो शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

Dada Bhai Naoroji Biography in Hindi

dada bhai naroji biography in hindi

  • वास्तविक नाम – दादा भाई नौरोजी
  • प्रोफेशन – परामर्शदाता, राजनीतिज्ञ, कपास के व्यवसायी
  • जन्म – 4 सितंबर, 1825 को ब्रिटिश राज
  • बंबई में गणित और प्राकृतिक विज्ञान के अध्यापक
  • मृत्यु – 92 वर्ष की अवस्था में 30 जून, 1917 को ब्रिटिश अधीन वर्सोवा में
  • नरमपंथी और गरमपंथी समर्थक

मात्र ११ वर्ष की अवस्था में दादाभाई नौरोजी का विवाह गुलबाई से हो गया था, बाद में इन्होने स्कॉटलैंड यूनिवर्सिटी से संबद्ध एल्फिंसटन कॉलेज से गणित और प्राकृतिक विज्ञान की पढ़ाई पूरी की थी। वर्ष 1850 में इन्होने मात्र 25 वर्ष की उम्र में इसी संस्थान में अध्यापक के तौर पर कार्य किया था। यह एकमात्र भारतीय थे जिनको ब्रिटेन में महत्वपूर्ण अकादमिक पद प्रदान किया गया था। इनके बारे में कहा जाता है की यह एक कपास के व्यवसायी और प्रतिष्ठित निर्यातक भी थे।

देश के लिए दादाभाई नौरोजी का योगदान

इन्होने वर्ष 1851 में रहनुमा मजदायसन सभा और 1854 में पाक्षिक पत्रिका प्रकाशित की थी, बाद में वर्ष 1855 तक यह बंबई में गणित और प्राकृतिक विज्ञान के अध्यापक के रूप में कार्य किये थे। वर्ष 1855 में कामा एंड कंपनी के हिस्सेदार के रूप में यह फिर से वापस इंग्लैंड चले गए थे, जहाँ इन्होने कामा एंड कंपनी की शाखा इंग्लैंड में खोलने का बिचार बनाया था, बाद में नैतिक कारणों का हवाला देते हुए दादाभाई नौरोजी ने कंपनी से इस्तीफा दे दिया था। कुछ ही समय के बाद इन्होने वहां नौरोजी एंड कंपनी नाम से कपास निर्यात की कंपनी स्थापित की थी। समय बीतने के साथ इन्होने यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन में गुजराती भाषा के अध्यापक के रूप में काम किया।

वर्ष 1867 में इन्होने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठन ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना भी की थी, जल्द ही इसे अंग्रेजों का समर्थन मिलने लगा और यह ब्रिटिश संसद में भी प्रभावी रूप से अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए थे।

वर्ष 1874 में नौरोजी साहब बड़ौदा के राजा के प्रधानमंत्री बने, बाद में वर्ष 1885 से 1888 तक यह बम्बई विधानपरिषद के सदस्य भी रहे थे। समय के साथ राजनैतिक में सक्रिय भागीदारी बनाए रखने के लिए यह दोबारा ब्रिटेन चले गए, जहाँ इन्होने वर्ष 1892 में आमचुनावों में फिंसबुरी सेंट्रल से लिबरल पार्टी से चुनाव लड़ा और चयनित भी हो गए और पहले ब्रिटिश भारतीय सांसद भी बने। ईसाई ना होने के कारण इन्होने शपथ लेने से इंकार कर दिया था। बाद में इनको मुस्लिम राजनेता और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का सहयोग भी मिला था। वर्ष 1906 में दादाभाई नौरोजी को दोबारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनने का मौका मिला था।

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