दुनिया में भारत की छवि एक अच्छे धार्मिक देश में होती है, भारत की धरती ने दुनिया को एक से बढ़कर एक महात्मा और संत दिए हैं, उन्हीं सन्तों में से एक हैं महान अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी, जिनको “सनातन हिन्दू धर्म” के एक प्रसिद्ध धर्मप्रचारक के रूप में देखा गया है। इनको स्वामी श्रीलाल भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है। इन्होने ही देश दुनिया में इस्कॉन (ISKCON) मंदिरों की स्थापना की थी, जिसका आज के आधुनिक युग में काफी बिस्तार हो चुका है। इन्होने कई वैष्णव धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन और संपादन स्वयं किया था। इनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकें आज भी देश दुनिया के इस्कॉन टेम्पल में मिलती हैं, यह सुबिधा ऑनलाइन भी उपलब्ध है साथ में बाजारों में भी बुक स्टाल पर इनके द्वारा लिखी गयी कई किताबें मिलती हैं।
जीवन परिचय –
भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी का जन्म 1 सितम्बर 1896 को कलकत्ता में एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। यह भक्ति सिद्धांत ठाकुर सरस्वती जी के शिष्य थे, जिन्होंने इनको अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया था। महाराज जी के बचपन का नाम “अभयचरण डे” था। इन्होने हिन्दू धर्म में भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता को काफी प्रचारित किया जिसका फल यह रहा की आज इनके प्रयासों से ही समस्त विश्व के करोडों लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने हैं।
Swami Prabhupada Biography Hindi – संछिप्त परिचय
वास्तविक नाम – प्रभुपाद जी
प्रचलित नाम – भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी
पूरा नाम – अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी महाराज
प्रोफेशन – गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक
मंदिर स्थापना – इस्कॉन (ISKCON) की स्थापना
वर्ष 1966में (70 वर्ष की आयु में) इन्होने अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (ISKCON) की स्थापना की थी।
वर्ष 1968 में इन्होने प्रयोग के तौर पर वर्जीनिया (अमेरिका) की पहाड़ियों में नव-वृन्दावन की स्थापना भी की थी।
वर्ष 1972 में इन्होने टेक्सस के डैलस में गुरुकुल की स्थापना की थी।
इन्होने ने ही दुनिया में माध्यमिक शिक्षा की वैदिक प्रणाली का सूत्रपात किया था।
वर्ष सन 1966 से 1977 तक इन्होने विश्वभर का 14 बार भ्रमण किया था।
इन्होने ही भक्तिवेदांत इंस्टिट्यूट की स्थापना करवाई थी।
To be Continued…?